मशवारा
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मशवारा
यह शायर जनम से जो साथ है मेरे
इसी ने चॉँदनी की रेत भर-भर के मेरे सीने में डाली है
हमेशा जिंदगी से दर्ध चुन चुन कर मेरी ऑँखों पे मारे है!
हमेशा भींच कर दॉँतो से छीला है मेरी रूह को
इसी ने सॉँस की जलती ख़राशों को कुरेदा है
उॅँडेला है मेरे कन्धों पे जलता-खौलचा शोरा
खयही कहता था मुझको, ‘दर्दसे पहचान मिलती है’
ख़ुद अपने दर्द से घबरा गया है आज यह शायर
मुझसे कहता है ‘चल आ, ख़ुदकुशी कर लें’
छायाचित्र : प्रशांत नाडकर
उर्दू अक्षरांकन : प्रकाश पाथ्रे
मराठी अक्षरांकन : अमोल सावंत
मुझसे इक नज़्म का वादा है मिलेगी मुझको
डूबती नब्जों में जब दर्द को नींद आने लगे
ज़्ार्द-सा चेहरा लिए चॉँद उफ़क पर पहुॅँचे
दिन अभी पानी में हो, रात किनारे के क़रीब
न अंधेरा न उजाला हो, न यह रात न दिन
जिस्म जब ख़त्म हो और रूह को जब सॉँस आए
मुझ से इक नज़्म का वादा है मिलेगी मुझको
यह शायर जनम से जो साथ है मेरे
इसी ने चॉँदनी की रेत भर-भर के मेरे सीने में डाली है
हमेशा जिंदगी से दर्ध चुन चुन कर मेरी ऑँखों पे मारे है!
हमेशा भींच कर दॉँतो से छीला है मेरी रूह को
इसी ने सॉँस की जलती ख़राशों को कुरेदा है
उॅँडेला है मेरे कन्धों पे जलता-खौलचा शोरा
खयही कहता था मुझको, ‘दर्दसे पहचान मिलती है’
ख़ुद अपने दर्द से घबरा गया है आज यह शायर
मुझसे कहता है ‘चल आ, ख़ुदकुशी कर लें’
छायाचित्र : प्रशांत नाडकर
उर्दू अक्षरांकन : प्रकाश पाथ्रे
मराठी अक्षरांकन : अमोल सावंत
मुझसे इक नज़्म का वादा है मिलेगी मुझको
डूबती नब्जों में जब दर्द को नींद आने लगे
ज़्ार्द-सा चेहरा लिए चॉँद उफ़क पर पहुॅँचे
दिन अभी पानी में हो, रात किनारे के क़रीब
न अंधेरा न उजाला हो, न यह रात न दिन
जिस्म जब ख़त्म हो और रूह को जब सॉँस आए
मुझ से इक नज़्म का वादा है मिलेगी मुझको